तारीख 19 अक्तूबर 1870, स्थान तामलुक, वेस्ट बंगाल के एक गरीब किसान परिवार में मातंगिनी हाजरा का जन्म हुआ। कहते हैं गरीब की सबसे बड़ी चिंता उसकी बेटी होती है। वैसे ही गरीब के घर पैदा होने वाली स्त्रियों की शादी फिक्र अधिक होती है, इनके पिताजी को भी इनकी शादी की फिक्र हुई, मात्र बारह साल की आयु में इनकी शादी पचास साल बड़े शख्स से करा दी गई, मातंगिनी हाजरा के लिए कोई सदमे से कम नही था, दुखों का पहाड़ उनके ऊपर छ सालों बाद फिर टूटा, अठारह साल की उम्र में वो विधवा हो गईं।
असहाय, विधवा होने के पश्चात वो मायके में वापस आकर रहने लगीं, लेकिन मायके में उनका कोई आसरा नहीं था, इसी वजह से उन्होंने एक झोपड़ा बनाकर बाहर रहने लगीं, उनकी कोई संतान भी नही थी। बचपन से क्रांतिकारियों के बारे में सुनने में उन्हें आनंद आता था, वो भी स्वतंत्रता सेनानी के रूप में अपनी ज़िंदगी देना चाहती थीं, एक खास मौके की तलाश में थीं। एक सुनहरा मौका 1930 में मिला, जब गांधी जी का आगमन उनके घर के पास हुआ, ऐसे में उन्होंने स्वागत अभिनदंन-शंख बजा के किया।
उस समय तक आजादी के आंदोलन में महिलाओं की भूमिका कुछ ज्यादा नहीं थीं, लड़कियों के लिए आंदोलन आदि अच्छा नहीं माना जाता था, लेकिन मातंगिनी हाजरा ने ये शर्म तोड़ दिया, जी-जान लगा के आंदोलन में भाग लिया। मातंगिनी हाजरा, गांधी जी से बहुत प्रभावित थीं, इसी वजह से उन्हें ने गांधी चरित्र अपने जीवन मे उतारना आरंभ किया, उन्होंने ने चरखा चलाना शुरू किया, सूत कातना आरंभ कर दिया। खादी पहनना आरंभ कर दिया, सामाजिक गतिविधियों में बढ़-चढ़ के हिस्सा लेने लगी। इसी वजह से लोगों ने उनको बूढ़ी गांधी*(ओल्ड लेडी गांधी) बुलाना शुरु किया।
1932 में गांधी के नेतृत्व में स्वाधीनता आंदोलन चल रहा था, उसी भीड़ में ओल्ड लेडी गांधी ने भी हज़ारों लोगों के साथ प्रण लिया, जब तक ज़िंदा हैं तन,मन,धन से आज़ादी के लिए काम करेंगी। उसी साल उन्होंने नमक बना के अँग्रेज़ी शासक के विरोध बिगुल फुंक दिया, उनके इस कार्य से अँग्रेज़ी शासक ने उन्हें गिरफ्तार करके के जेल में डाल दिया, जेल के दौरान उनकी उम्र 62 साल थी, लेकिन ये उम्र उनके लिए सिर्फ एक संख्या से अधिक नहीं थे, संख्या की खासियत ये है ये कभी बढ़ती कभी घटती हैं, जेल से छूटने के बाद भी ओल्ड लेडी गांधी ने आजादी-आंदोलन में भाग लेना बन्द नहीं किया, उल्टे उन्हें इसमें और आनंद आने लगा। वो और जी जान से लग गईं, आजादी आंदोलन में।
साल 1933 में श्रीरामपुर में कांग्रेस केअधिवेशन में अंग्रेज़ी हुक़ूमत ने लाठी चार्ज किया, तो वो भी घायल हो गईं, लेकिन ये लाठी चोट बनकर नहीं आशीर्वाद बनकर पड़ी थी, लाठियों की मार ने उनके हिम्मत को पुख्ता करने का काम किया। इसका बदला मातंगिनी हाजरा ने बहुत शानदार तरीके से लिया। तत्कालीन बंगाल ब्रिटिश गवर्नर जान एंडरसन का बंगाल आगमन हुआ, तब सबसे आगे बढ़कर मातंगिनी ने एंडरसन को काले झंडे दिखाए, और अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराई।
इस कारनामे की वजह से रातों- रातों ओल्ड लेडी गांधी अँग्रेज़ी हुक़ूमत की निगाह पर चढ़ गईं, काले झंडे दिखाने की वजह से उन्हें छ माह की सज़ा हुई, जेल के अंदर उन्हें यातनांए दी गईं, हिम्मत तोड़ने के लिए, लेकिन ओल्ड लेडी ना जाने किस मिट्टी की बनी थीं। जेल से बाहर आते ही उन्होंने फिर आंदोलन में भाग लेना आरंभ कर दिया।
1935 के आस-पास तामलुक का इलाका हैजा और चेचक की चपेट में आ गया, ओल्ड लेडी गांधी ने अपनी जान की परवाह की बिना ही जी जान से लग गई, गरीबों बेसहारा की एक माँ बनकर की दिन-रात सेवा की, उनकी खुद कोई औलाद नहीं थी, लेकिन एक माँ जो कर सकती थी सब किया सभी ज़रूरतमंद की सेवा की।
साल 1942 में महात्मा गांधी के आग्रह पर लाखों लोगों ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भाग लिया, तब ओल्ड लेडी गांधी सभी स्त्रियों में सबसे प्रमुख थीं। ओल्ड लेडी गांधी ने महात्मा गांधी के साथ कदम से कदम मिलाकर आंदोलन में भाग लिया।
करीब छ हज़ार लोगों के आंदोलन का नेतृत्व ओल्ड लेडी गांधी भी कर रही थी, फैसला ये हुआ कि तामलुक के सभी स्थानों से जहां-जहां अँग्रेज़ी हुकूमत है, उन्हें खदेड़ना हैं, उन्हें बाहर फेंकना हैं, लेकिन शान्ति और अमन के साथ, बिना रक्त बहाए। अँग्रेज़ी हुकूमत ने धारा 144 लगा रखी थी, कहीं भी कोई एक जगह इकट्ठा नहीं होगा। तामलुक पुलिस स्टेशन को घेरने के आंदोलन का नेतृत्व मातंगिनी हाजरा को करना था। और उस उपर ब्रिटिश झंडे को हटाकर तिरंगा लहराने का। पुलिस स्टेशन को घेरने से पहले ही पुलिस ने उन्हें रोक लिया और क्रूरता पूर्ण रवैया अपनाया, अँग्रेज़ी हुक़ूमत ने इनके ऊपर गोलियां चलाई, सब के सब क्रन्तिकारी निहत्थे थे, इस गोली कांड में ओल्ड लेडी गांधी के हांथ मे गोली लग गई, लेकिन वे पुलिस स्टेशन की दीवार चढ़ गईं। पुलिस स्टेशन के एक ऊँचे जगह वे चढ़के तिरंगा लहराने का प्लान था, उनके हाथ में भारत का झंडा था, उनका एक हाथ घायल था, इसके बावजूद उन्होंने तिरंगा झंडा दूसरे हाथ में पकड़ा हुआ था। वंदेमातरम् का घोष लगातार बढ़ता जा रहा था, साथ ही साथ ‘भारत माता की जय’ का भी उद्घोष हो रहा था। अंग्रेज समझ गए कि आज ये क्रांतिकारी कुछ कर गुजरेगें, लोगों का ये गुस्सा था सैंकड़ो सालों पुराने दुखों का। आंदोलन की भारी भीड़ को पास आते देख अँग्रेज़ी हुक़ूमत जनसंहार पर उतर आई, और तभी अँग्रेज़ी पुलिस ने ओल्ड लेडी गांधी के दूसरे हाथ में भी गोली मार दी।
लेकिन गोली ने कोई असर नहीं किया, उल्टा जादू किया, लोग मातंगिनी हाजरा को संभालने के लिए आगे बढ़ने लगे। स्वतंत्रता सेनानियों का हुजूम अपनी तरफ बढ़ता देख, अंग्रेजों ने ओल्ड-लेडी गांधी के सिर में गोली मार दी, गोली लगते ही ओल्ड लेडी एक तरफ बैठ गईं, हाथों में इनके झंडा था, फिर भी उन्होंने झंडे को गिरने नहीं दिया अपने सीने से लगा के रखा। बंदे-मातरम, ‘भारत माता की जय’ बोलते हुए आजादी का सपना लिए वो हमेशा-हमेशा के लिए हमें छोड़ के चली गईं।
वे लड़ीं आज़ादी के लिए। ऐसी आज़ादी जहाँ हम भारतवासी खुली हवा में साँस ले सकें, लेकिन आज़ादी उनके जीते जी पूरा नहीं मिली, उनका सपना पूरा हुआ उनके बलिदान के पाँच वर्ष बाद। भारत 1947 में ज़रूर आज़ाद हुआ, आज़ादी के लिए उनके बलिदान को लिए देश सदैव उनका कर्ज़दार रहेगा, ऐसी वीरांगना को बार-बार, हज़ार बार नमन है।
- फ्रंटियर गाँधी की फेसबुक वाल से साभार
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